धन वृद्धि के लिए बड़े गणेश जी की कहानी(ganesh ji ki kahani)
गणेश चौथ व्रत कथा
दोस्तों आपने तो सुना ही होगा कि हर शुभ कार्य से पहले गणेश जी को याद किया जाता है। गणेश जी विघ्नहर्ता कहलाते हैं, इसीलिए हर कार्य की शुरुआत में इन्हें याद किया जाता है। इनके व्रत करने से आपको अपार धन संपदा प्राप्त होती है तथा गणेश जी की कहानी(ganesh ji ki kahani) सुनकर आप अपने आप को उनके एक नए भक्त के रूप में बदल सकते हैं। गणेश जी की कहानी(ganesh ji ki kahani) सुनने से बड़े-बड़े लोगों ने अपने व्यवसाय में वृद्धि की है ।तथा गणेश जी की कहानी सुनने से आपके घर में भी सुख शांति का वातावरण बना रहता है तो आइए सुनते हैं गणेश जी की कहानी(ganesh ji ki kahani)....यह भी पढ़े : लक्ष्मी जी की आरती( lakshmi ji ki aarti)जो दे आपको कई गुना धन समृद्धि
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गणेश जी की पहली कहानी(ganesh ji ki kahani)
1. विनायक चतुर्थी की व्रत कथा (गणेश चौथ की कहानी)
एक समय की बात है, किसी गांव में एक विष्णु शर्मा नाम के ब्राम्हण रहते थे। वह वेदों के ज्ञाता थे और उनके साथ पुत्र थे, जिनमें से 6 पुत्र संपन्न थे। लेकिन एक पुत्र गरीब था। उनके सभी बेटे अलग-अलग रहते थे।
विष्णु शर्मा अपने हर एक पुत्र के घर एक एक दिन भोजन करते थे। धीरे धीरे वह वृद्ध होकर दुर्बल हो गए वह अपनी पुत्रवधू द्वारा अपमानित होकर रोते रहते थे। एक बार विष्णु शर्मा ने गणेश चौथ का व्रत रखा। और अपने सबसे बड़ी बहू के घर पहुंचे और बोला "बहू मैंने आज गणेश चौथ का व्रत किया है तुम पूजा का सामान इकट्ठा कर दो भगवान गणेश खुश होकर तुम पर कृपा करेंगे" ।
यह सुनकर बहु कठोर वाणी में बोली "पिताजी मुझे तो घर के कार्यों से ही फुर्सत नहीं है मेरे पास इन फिजूल के कामों के लिए समय नहीं है आप तो हमेशा कुछ ना कुछ काम बताते रहते हो मैं नहीं जानती आप के गणेश जी को"।
सबसे बड़ी बहू से डांट सुनकर विष्णु शर्मा अपनी सभी बहू के घर गए, परंतु सभी ने उन्हें डांट कर भगा दिया। वह बहुत दुखी हुए और अंत में अपनी छोटी बहू के घर गए।
छोटी बहू के घर भी वे समझाते हुए बोले "बहुरानी सब बहुओं ने तो मुझे डांट कर घर से निकाल दिया अब मैं कहां जाऊं तुम्हारे पास तो मेरे व्रत की सामग्री लाने के भी पैसे नहीं है"।
बहू बोली "ससुर जी आप परेशान ना हो और अपनी इच्छा पूर्वक व्रत करें। आपके साथ में भी व्रत करूंगी"। ऐसा कहकर छोटी बहू पड़ोसन से व्रत की सामग्री मांगने गई।उसने अपने ससुर के साथ पूजन किया। पूजन के बाद खाने की कमी से खुद भूखा रहकर ससुर को खाना खिलाया। और खुद भूखी ही सो गई। आधी रात के बाद ससुर को उल्टियां होने लगी। वो रोने लगी बोली "पिताजी मेरे बनाए हुए खाने से आपको उल्टियां होने लगी"। और वह सारी रात अपने ससुर के पास बैठी रही।
इस प्रकार उसका व्रत के साथ-साथ गणेश चौथ का जागरण भी हो गया। सुबह उठकर उसने देखा कि उसका सारा घर हीरे मोतियों से जगमग आ रहा है। अपने ससुर से बोली "पिताजी इतने हीरे मोती मेरे घर में कहां से आए"। तब ब्राह्मण विष्णु शर्मा बोले "बहु यह सब तो तुम्हारी भक्ति का फल है जिससे भगवान गणेश प्रसन्न हो गए हैं और उस व्रत के फल स्वरुप तुम्हें इतना धन मिला है"।
बहू बोली पिता जी आपकी कृपा से गणेश जी मुझ पर प्रसन्न हुए हैं और मुझे अपार धन संपत्ति प्राप्त हुई है छोटी बहू के घर में इतनी धन-संपत्ति देखकर विष्णु शर्मा के सभी बेटे और बहू में वहां आ गए और क्रोधित होकर बोले "बुड्ढे ने अपना सारा जमा किया हुआ धन सबसे छोटे बेटे को दे दिया है"।
तब विष्णु शर्मा बोले इसमें मेरी कोई कृपा नहीं है छोटी बहू के गणेश चौथ का व्रत करने से भगवान गणेश ने प्रसन्न होकर यह संपत्ति उसे प्रदान करी है मैंने पहले तुम सभी बहू के घर पर जाकर यह व्रत करने को कहा था। परंतु तुमने मेरी एक ना सुनी छोटी बहू ने मांग कर पूजा की सामग्री एकत्रित करें यह व्रत करा और इसकी सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर गणेश जी ने इसे अपार संपत्ति प्रदान करी है ।
2. गणेश जी की दूसरी कहानी
एक गांव में एक वृद्धा रहती थी। उसकी बहू थोड़ी सी पागल जैसी रहती थी। उसे भूख बिल्कुल सहन नहीं होती थी, वह रोज सुबह उठकर पहले खाना खाती थी, फिर दूसरे काम करती थी।(आप पढ़ रहे हैं गणेश जी की कहानी)
एक दिन उनके यहां पूजा होनी थी, और पूजा के लिए खाना बनाना था, तो वृद्धा ने सोचा कि यह तो सुबह उठकर सबसे पहले खाऊं खाऊं करेगी और सारा खाना जूठा कर देगी। तो वृद्धा ने एक उपाय सोचा उसने पानी के मटके के नीचे एक छेद कर दिया और बहुत से कहा कि आज पूजा है "तू सुबह से खाऊं खाऊं मत करजे"।(आप पढ़ रहे हैं गणेश जी की कहानी)
"तू पहले पानी भर ला फिर कुछ खा पी लीजिए" बहू ने सास से कहा कि ठीक है मां और वह पानी भरने के लिए चली गई। बहु पानी भरने कुए पर आई तो उसने वहां पर सबसे पहले अपने साड़ी में बंधा हुआ आटा निकाला, फिर पनघट पर उसे गूंथ लिया और उसकी बाटिया बना ली।(आप पढ़ रहे हैं गणेश जी की कहानी)
वहीं पास में शमशान था वहां एक मुर्दा जलाया गया था। तो उसकी आंच में उसने वह बाटिया सेक ली। और पास में ही एक गणेश जी का मंदिर था। मंदिर में किसी ने गणेश जी को चोला चढ़ाया था, तो गणेश जी की तोंद में घी लगा हुआ था। उसने उससे बाटिया चोपढ़कर एक बाटीका भोग गणेश जी के लगाकर, उसने वह बाटिया खाली। (आप पढ़ रहे हैं गणेश जी की कहानी)
उसके बाद वह आराम से अपने घर चली गई। इधर गणेश जी ने क्रोधित होते हुए नाक पर उंगली चढ़ाली। फिर उसके बाद कोई उधर से निकला तो उसने देखा कि गणेश जी ने नाक पर उंगली चढ़ा रखी है। तो उसने गांव में जाकर सबसे कह दिया कि गणेश जी ने नाक पर उंगली चढ़ा ली, अब गणेश जी की नाक पर से उंगली उतारने के लिए सब प्रयास करने लगे। कोई गणेश जी के पाठ करने लग गया, कोई हवन कर रहा है ताकि गणेश जी की नाक पर से उंगली हटा ले, पर गणेश जी ने नाक पर से उंगली नहीं हटाई। (आप पढ़ रहे हैं गणेश जी की कहानी)
अब यह बात राजा तक पहुंच गई। राजा ने बड़े-बड़े पंडित और ज्योतिष बुलवाएं, पर वह भी गणेश जी की नाक से उंगली नहीं हटा पाए। अब राजा ने पूरे राज्य में मुनादी करवा दी कि जो भी गणेश जी की नाक पर से उंगली हटाएगा उसे 5 गांव की जागीर दे दी जाएगी। अब राज्य में सभी लोग अपनी अपनी तरफ से प्रयास करने लगे पर गणेश जी ने नाक से उंगली नहीं हटाई।(आप पढ़ रहे हैं गणेश जी की कहानी)
सब थक हार गए ।आखिर में डोकरी की बहू बोली, की मां साहब आप कहो तो मैं गणेश जी की नाक से उंगली हटा सकती हूं। तो वृद्धा हंसने लगी कि बड़े-बड़े पंडित और ज्योतिष गणेश जी की नाक से उंगली नहीं हटा पाए, यह कैसे हटा देगी परंतु हो सकता है कि ऐसा हो जाए। (आप पढ़ रहे हैं गणेश जी की कहानी)
तभी एक आदमी ने कहा कि "एक बार इसे भी मौका दो। इसे भी प्रयास कर लेने दो। हो सकता है कि यह गणेश जी की नाक पर से उंगली हटा दे"। "बहू ने कहा पर मेरी एक शर्त है कि मेरे घर से गणेश जी के मंदिर तक एक बड़ा पर्दा लगाया जाए"। तो लोगों ने कहा ठीक है और घर से मंदिर तक पर्दा लगवा दिया।
(आप पढ़ रहे हैं गणेश जी की कहानी)
अब बहू ने अपने घागरे (पेटीकोट) में धोवना (कपड़े धोने का हथियार) छिपाकर मंदिर गई। मंदिर में ढोवना निकालकर गणेश जी से बोली "कारे कारे गनेश्या मारा गर सू आटो लाई घर से पनघट पर आटो ओसन के उनिकी बाटिया बनाई, मर्या मुर्दा की आग में सेकी, थारी तोंद में से जरा सो घी ले लियो तो तूने नाक पर उँगली चढ़ा ली।नाक पे से ऊँगली हटा रियो की नई,नही तो दु एक धोवना री अभी था टुकड़ा टुकड़ा हो जाएगा"।(आप पढ़ रहे हैं गणेश जी की कहानी)
बहू की बात सुनकर गणेश जी डर गए उन्होंने सोचा कि या बावली सही में मार देगी तो कई करूंगा। अनी को कई भरोसो और गणेश जी ने फट से नाक पर से उंगली हटा ली ।पूरेगां व में डोकरी की बहू की जय जयकार होने लगी कि डोकरी की बहू ने गणेश जी की नाक से उंगली हटवा दी। राजा ने अपने आदेश अनुसार 5 गांव जागीर में दिए।(आप पढ़ रहे हैं गणेश जी की कहानी)
हे गणेश जी महाराज जैसे उस डोकरी की बहू के टूटे वैसे सबके टूट जो कथा अधूरी हो तो पूरी करे जो और पूरी हो तो मान कर जो
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