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चौथ माता की कहानी। करवा चौथ की सम्पूर्ण व्रत कथा

करवाचौथ व्रत की पूजन विधि
- जो सौभाग्यवती स्त्रियां इस करक चतुर्थी का व्रत करके सांयकाल विधि से पूजन करेंगे व अचल सौभाग्य धन पुत्र तथा बड़े भारी यश को प्राप्त होंगी करक इस मंत्र को पढ़कर दुग्ध अथवा जल से भरा हुआ कलश लेकर उसमें पंचरत्न डालकर ब्राह्मण को देवें और कहे कि गणेश जी इस करवा के दान से मेरे पति बहुत काल तक जीवित रहे मेरा सौभाग्य बना रहे सुहागिन स्त्रियों को भी देवे और उनसे लेवे भी इस प्रकार से सौभाग्य की इच्छा करने वाली स्त्रियां जो भी इसे करेंगी वह सौभाग्य पुत्र तथा अचल लक्ष्मी को प्राप्त होंगी
चौथ माता की कहानी
श्री कृष्ण ने कहा कि हे महाभागे!श्री पार्वती जी ने भगवान शंकर जी से यही प्रश्न किया था, तब श्री शंकर जी ने पार्वती से कहा था हे वराराहे। वही करक चतुर्थी नाम का व्रत मैं तुमसे कहता हूं, तुम ध्यानपूर्वक सुनो, जो सब प्रकार के विघ्नों का नाश करने वाला है।
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श्री पार्वती जी ने कहा कि हे भगवन! वह करवा चौथ का व्रत किस प्रकार है तथा उसका विधान क्या है और पहले भी उसे किसी ने किया है?
शंकर जी बोले कि पार्वती जी अनेक प्रकार के रत्नों से शोभायमान, चांदी और सोने के भवनों से भरे, विद्वान पुरुषों से सुशोभित, लोगों को वश में करने वाली, दिव्य स्त्रियों से शोभायमान, जहां पर सदैव ही वेद ध्वनि होती है- ऐसे स्वर्ग से भी मनोहर, परम रमणीक शुक्रप्रस्थपुर (दिल्ली शहर) में एक वेद शर्मा नामक ज्ञानी ब्राह्मण रहता था, उसकी पत्नी का नाम लीलावती था। उसको महा पराक्रमी 7 पुत्र और संपूर्ण लक्षणों से युक्त वीरवती नाम की एक कन्या उत्पन्न हुई। उसकी आंख नीलकमल के सामान और मुख चंद्रमा के समान था।आप पढ़ रहे है चौथ माता की कहानी उसके विवाह के योग्य समय आ जाने पर वेद शर्मा ने एक वेद शास्त्र के ज्ञाता विद्वान ब्राह्मण को विवाह विधि से उसे प्रदान कर दिया।
इसके पश्चात वीरवती ने अपने भाइयों की स्त्री (भोझाइयों) समेत गोरी का व्रत किया फिर कार्तिक कृष्ण चतुर्थी (करवा चौथ)के दिन व्रत उपवास कर साय काल में स्नान कर सभी ने भक्तिभाव से वट वृक्ष का चित्र बनाकर उसके नीचे शंकर जी गणेश जी और स्वामी कार्तिकेय के साथ पार्वती जी का चित्र बनाया और ओम नमः शिवाय इस मंत्र से गंध पुष्प और अक्षत आदि से गौरी का पूजन किया।
फिर शिव जी गणेश जी तथा षडानन का अलग-अलग पूजन करती हुई पकवान अक्षत दीपक से युक्त 10 करवा और गेहूं के निशान और गुड़ के बने हुए पकवान तथा और भी अनेक प्रकार के फल आदि भोज्य पदार्थों को अर्पण करके, अर्घ्य देने के लिए चंद्रोदय की प्रतीक्षा करने लगी।
इसी बीच वह वीरवती वाला भूख प्यास की पीड़ा से मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ी। तब उसके सब भाई बांधव रुदन करने लगे । फिर वीरवती का मुंह धोकर पंखे से हवा करके उसको ढाढस बंधाने लगे कि अब चंद्रमा उदय होने वाला ही है। उसका भाई चिंता युक्त होकर एक महान वटवृक्ष पर चढ़ गया वहीं के प्रेम से दुखी भाई ने जलती हुई लुकारी लेकर चंद्रमा के उदय होने का बहाना कर दिखाया।
उसने चंद्रमा का उदय जानकर दुख का त्याग करके विधि विधान से अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार व्रत के दूषित हो जाने के कारण उसका पति मर गया। आप पढ़ रहे है चौथ माता की कहानी तब वीरवती ने अपने पति को मरा हुआ देखकर पुनः शिवजी का पूजन 1 वर्ष तक निराहार व्रत करके किया। वर्ष के समाप्त होने पर करवा चौथ का व्रत उसके भाइयों ने किया।
वीरवती ने भी पूर्व विधान से व्रत किया ।जब उस दिन देव कन्याओं के साथ इंद्राणी वहां करक चतुर्थी का व्रत करने के लिए स्वयं स्वर्ग से वीरवती के पास आई तब वीरवती ने इंद्राणी से सब बातें पूछी। वीरवती ने कहा कि मैं करक चतुर्थी का व्रत करके अपने पति के घर आई तो मेरा पति मृत्यु को प्राप्त हो गया, मैं नहीं जानती कि किस पाप के कर्म से मुझको यह फल मिला है।
जय मातेश्वरी हमारे भाग्य से आप यहां आ गई है, सो मेरे भाइयों को जीवित करके मुझ पर कृपा कीजिए। इंद्राणी ने कहा कि सुबह गत वर्ष जो तुमने अपने पति के घर में करक चतुर्थी का व्रत किया था, तो बिना चंद्रमा के उदय हुए ही तुमने अर्घ्य दे दिया था। इसी से व्रत दूषित हो गया और तुम्हारा पति मृत्यु को प्राप्त हो गया ।अब तुम यत्न के साथ इस करवा चौथ का व्रत करो तत्पश्चात इस व्रत के प्रभाव से मैं तुम्हारे पति को जीवित कर दूंगी।
श्री कृष्ण जी कहने लगे कि हे द्रोपदी! इंद्राणी के वचन सुनकर वीरवती ने विधान पूर्वक व्रत किया इस प्रकार उसके करवा चौथ का व्रत करने से इंद्राणी ने प्रसन्न होकर जल के द्वारा अभी सिंचन कर उसके पति को जीवित कर दिया। वह देवता के समान हो गया इसके पश्चात वीरवती अपने पति के साथ घर आकर आनंद करने लगी। वीरवती के व्रत के प्रभाव से उसका पति धन-धान्य पुत्र तथा आयु को प्राप्त हुआ।
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इसलिए तुम भी इस व्रत को यत्न पूर्वक करो, सूत जी कहने लगे कि हे इस प्रकार श्री कृष्ण जी के वचनों को सुनकर द्रोपदी ने इस करवा चौथ व्रत को किया जिसके प्रभाव से संग्राम में कौरवों को जीतकर अतुलनीय राज्य को प्राप्त किया ।जिससे उनका सब दुख जाता रहा।
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